MahaKumbh मेले का basic Introduction
प्रयागराज महाकुंभ मे गितनी का सिलसिला जारी हो गया है जिस जगह कुंभ का मेला लगता है वहाँ अब अजब-गजब बाबा लोग आने लगे है उन्ही मे से एक विजय पुरी बाबा है जो आज भी घोड़े की सवारी करते आ रहे है वो जिस रास्ते से जाते है उस रास्ते मे बाबा के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ लग जाती है ।
Prayagraj MahaKumbh की शुरुआत कब होगी
प्रयागराज(Prayagraj) मे महाकुंभ (Mahakumbh) 13 जनवरी 2025 से कुंभ मेले की शुरुआत हो रही है लेकिन जीन लोगों या फिर बाबाओ से मेले की शोभा बड़ती है ओर जीन लोगों की बजह से कुंभ मेले मे चार-चाँद लग जाते है उन लोगों की गिनती मे आने की संख्याो ने आना भी शुरू कर दिया है कुंभ मेले की शान 13 लोग है ओर इनके आने से कुंभ मेले का आकार ओर बड़ता जा रहा है ओर अभी से ही कुंभ मेले मे लोगों ने सजावट करने की शुरुवात कर दी है इस कुंभ मेले मे साधुओ के भी कई सारे रूप दिखे है ।
MahaKumbh मेले मे आएंगे साधु
कुंभ मेले मे अजब-गजब साधुओ ने लोगों को अपने तरफ आकर्षित कर लिया है ओर इस बार इन बाबाओ मे एक अलग बाबा भी दिखे , जो घोड़े पर आए है ओर उनको लोग घोड़े वाले बाबा भी कहते है साधु भी जमाने के साथ साथ बदलते नजर आ रहे है साधु संतों के पास आधुनिक युग के साथ ट्रेडिशन के हिसाब से गाड़ियों के शोकिन भी है।
कुंभ मेले मे दिखेंगे Modern साधु संत
साधु संतों के पास महंगी गाड़ी ओर महंगे चश्मों के साथ साथ हाथों मे महंगे फोन भी नजर आ रहे है साधुओ मे भी जमाँने के साथ अपने सभी सामानों को इस्तेमाल करते नजर आते है । लेकिन इन साधुओ के साथ भी कुछ एसे साधु संत है जो हमारी भारतीय संस्कृति ओर ट्रेन्डीशनल को निभाते आ रहे है उन बाबाओ मे से, बाबा विजय पूरी बाबा जी, जो अपने पुराने भेज भुशा मे रहना पसंद करते है ।
बाबा विजय पूरी जी आज भी दिखते है तो वो अपने घोड़े पर घूमते फिरते नजर आते है घोड़े वाले बाबा या बाबा विजय पूरी जी जीदर भी जाते है उधर की लाइनों मे इतनी भीड़ जुड़ जाती है की निकालना ,निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है ।
प्रयागराज संगम के रेत पर हो रहे कुंभ के मेले मे बाबाओ के आने से मेले की खूबसूरती ओर भी जादा झलकती है, ओर मेले मे एसी गतिबिधिया को देखने के लिए लोगों की भीड़ इकट्टी हो जाती है।
इस मेले मे अनेकों प्रकार के बाबा अपने अपने भव्य कपड़ों के साथ अपने धार्मिक आभूषड़ के साथ कुम्भ मेले की शोभा बड़ाने वाले है । ये भी सही भी है क्योंकि हमारी जो संस्कृति है उसे कायम रखने के लिए बाबा लोगों ने ये बीड़ा उठाया है।
